उत्तर प्रदेश में एक लाख से अधिक बिजली कर्मियों ने निजीकरण के विरुद्ध पूरे दिन किया व्यापक विरोध प्रदर्शन
आज दिनांक 09 जुलाई 2025, नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर देश भर के 27 लाख से अधिक बिजली कर्मचारियों एवं अभियंताओं ने एकजुट होकर बिजली के निजीकरण के खिलाफ सांकेतिक हड़ताल की। उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिला, जहां एक लाख से अधिक बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता कार्य स्थलों और कार्यालयों के बाहर जनजागरूकता और विरोध प्रदर्शन में पूरे दिन सम्मिलित रहे।
यह हड़ताल महज़ एक दिन की नहीं, बल्कि सरकार की जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ एक जनसंघर्ष का उद्घोष है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के फैसले ने प्रदेश के लाखों बिजली कर्मचारियों में असंतोष की लहर पैदा कर दी है।
संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन किसी वेतन या सुविधा की मांग नहीं है, बल्कि यह आम जनता की सस्ती, सुलभ और भरोसेमंद बिजली सेवा को बचाने की लड़ाई है। निजीकरण से न केवल कर्मचारियों की आजीविका संकट में आएगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी महंगी और अनिश्चित बिजली सेवा का सामना करना पड़ेगा।
इस ऐतिहासिक हड़ताल में बिजली क्षेत्र के अतिरिक्त रेल, बैंक, बीमा, बीएसएनएल, डाक, सार्वजनिक उपक्रम, निजी उद्योग और केंद्र व राज्य सरकारों के विभागों से जुड़े लगभग 25 करोड़ मजदूरों और कर्मचारियों ने भी अपना समर्थन और एकजुटता दर्ज की।
संघर्ष समिति ने भारत सरकार से मांग की है कि वह अविलंब हस्तक्षेप कर उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देशित करे कि दोनों वितरण कंपनियों के निजीकरण का निर्णय तत्काल वापस लिया जाए। यह मांग 10 राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों के साझा मांगपत्र में भी प्रमुखता से दर्ज है।
राजधानी लखनऊ सहित सभी जनपदों एवं परियोजनाओं पर आज दिनभर बिजली कर्मचारी कार्यालयों से बाहर आकर शांतिपूर्ण लेकिन प्रचंड विरोध दर्ज कराते रहे। शक्ति भवन मुख्यालय, मध्यांचल, लेसा, ट्रांसमिशन, एसएलडीसी, ईटीआई, उत्पादन निगम में तैनात हजारों कर्मचारी पूरे दिन शक्ति भवन पर डटे रहे और सरकार को चेतावनी दी कि यदि निजीकरण का निर्णय वापस नहीं लिया गया, तो यह आंदोलन और व्यापक और निर्णायक रूप ले सकता है।
संघर्ष समिति ने यह भी आश्वस्त किया कि उपभोक्ताओं की मूलभूत विद्युत आवश्यकताओं को बाधित न किया जाए, इसके लिए प्रत्येक जनपद में विशेष निगरानी टीम तैनात की गई है।
यह सिर्फ एक चेतावनी है, यदि सरकार नहीं चेतती है तो आंदोलन को लंबी अवधि तक चलाने पर भी बिजली कर्मी पीछे नहीं हटेंगे। यह केवल कर्मचारियों की नहीं, आम जनता की सेवा, अधिकार और भविष्य की रक्षा की लड़ाई है।

