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    8 वर्ष की उम्र में श्रमिक बने मेवालाल ने बेटों को बनाया डिग्री कालेज का लेक्चरर,पोता पहुंचा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी

    BySatyameva Jayate News

    May 1, 2023
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    जौनपुर-कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो जरा तबियत से उछालो यारों। यह कहावत श्रमिक मेवा लाल मौर्य पर चरितार्थ होती है जो 8 वर्ष की उम्र से मजदूरी करते हुए लेबर मिस्त्री का कार्य किया और अपनी मेहनत के बल पर उसने अपने दो बेटों को डिग्री कॉलेज का लेक्चर बनवाया और पोते को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका में शिक्षा दिला रहा है। जनपद में एक दर्जन से अधिक डिग्री व इंटर कॉलेज व हजारों मकान इन्होंने अपने हाथों से बनाया है।

    लाइन बाजार थाना क्षेत्र के सैदनपुर मुरादगंज निवासी 82 वर्षीय मिस्त्री व ठेकेदार मेवा लाल मौर्य 1941 में पैदा हुए थे। उन्होंने बताया कि बचपन में अध्यापक बनना चाहते थे लेकिन कक्षा 3 पास करने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह नौ वर्ष की उम्र में खेतों में मजदूरी करने लगे। 50 पैसा मजदूरी उस वक्त मिलती थी। 1953 में 12 वर्ष की उम्र में वह शहर चले आए और भगेलू मिस्त्री के साथ लेबर का काम घर बनाने का काम सीखने लगे। 21 वर्ष की उम्र में लेबर से मिस्त्री बने 1989 तक मिस्त्री का कार्य करते रहे।इसके बाद मिस्त्री के साथ साथ वह ठेकेदारी करने लगे। आज की तिथि में उनके साथ 15 मिस्त्री व बीस लेबर कार्य कर रहे हैं। जोखिम व तकनीकी वाले कार्यों में स्वयं कन्नी, बसुली रम्भा लेकर कार्य करने लगते हैं। उनका सपना अध्यापक बनने का था लेकिन पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह मजदूरी करने लगे।अपनी मेहनत के बल पर उन्होंने अपने बेटों को उच्च शिक्षा दिलवाया। उनका बड़ा बेटा डॉक्टर एलपी मौर्य शिया डिग्री कॉलेज बॉटनी का हेड ऑफ डिपार्टमेंट है। छोटा बेटा रतन चंद्र मौर्य सूरत गुजरात के कॉलेज में जूलॉजी का लेक्चरर है। तीसरा बेटा मदन चंद उन्हीं के साथ मिस्त्री व ठेकेदारी का कार्य करता है। उनका पोता विभोर 22 वर्ष हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। मेवा लाल ने बताया कि जनपद के एक दर्जन इंटर व डिग्री कॉलेज वह अब तक बना चुके हैं जिसमें कचगांव का सरजू प्रसाद महाविद्यालय, मदारपुर का सन्त बक्श सिंह महाविद्यालय, मीरगंज का सर्वोदय महाविद्यालय इत्यादि शामिल है। इसके अलावा बैंकर्स कॉलोनी के 60 परसेंट मकान उन्होंने ही बनाया है। तारापुर कॉलोनी के 50 से अधिक मकान उनके हाथ से बनाए हुए हैं। अब तक वह हजारों मकान जनपद में बना चुके हैं। वह स्वयं तो अध्यापक नहीं बन सके लेकिन अपने बेटों को शिक्षा जगत के उच्च शिखर पर पहुंचा दिया।

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